बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्र बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्र
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कार्यपालिका शक्ति एवं कार्य :
राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री एवं मंत्रीपरिषद
Executive Power and Function:
President, Prime Minister and Cabinet
प्रश्न- राष्ट्रपति पद की योग्यतायें एवं कार्यकाल बताते हुए इस पद की संवैधानिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
अथवा
राष्ट्रपति की शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
राष्ट्रपति की आपातकालीन (संकटकालीन) शक्तियों का आलोचनात्मक वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय राष्ट्रपति के कार्यों और अधिकारों का वर्णन कीजिये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति पर प्रकाश डालें।
2. राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
3. राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
4. राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियाँ क्या हैं?
5 राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियों के बारे में आप क्या जानते हैं?
6. राष्ट्रपति की आपात शक्तियों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
अथवा
राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियाँ बताइये।
7. राष्ट्रपति शासन से आप क्या समझते हैं?
8. राष्ट्रीय आपात क्या है? यह कब लगाया जाता है?
9. वित्तीय आपात क्या है? इसका प्रभाव समझाइये।
उत्तर-
भारतीय गणतंत्र के राष्ट्रपति का पद अत्यन्त गौरवपूर्ण है। भारत की संसदीय व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रपति वास्तविक प्रधान नहीं अपितु संवैधानिक प्रधान होता है।
राष्ट्रपति पद की योग्यतायें
संविधान के अनुच्छेदं 58 के अनुसार राष्ट्रपति पद के लिए निम्नलिखित योग्यताये निर्धारित की गयी हैं -
1. वह भारत का नागरिक हो,
2. वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो
3. वह लोक सभा का सदस्य चुने जाने की योग्यता रखता हो।
4. भारत सरकार अथवा राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर न हो।
राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों लोकसभा, राज्यसभा तथा राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों विधानसभा, विधान परिषद में से किसी का भी सदस्य नहीं होना चाहिए। यदि निर्वाचन के पूर्व व किसी भी सदन का सदस्य है तो, निर्वाचन की तिथि से उसकी सदस्यता समाप्त मानी जायेगी।
राष्ट्रपति पद का कार्यकाल
राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तिथि से 5 वर्ष तक पद धारण करता है तथा कार्यकाल तथा कार्यकाल पूरा होने के पश्चात् पुनः निर्वाचित हो सकता है। इस प्रकार राष्ट्रपति का सामान्य कार्यकाल 5 वर्ष है, किन्तु इसके पूर्व भी वह दो प्रकार से पदमुक्त हो सकता है -
1. उपराष्ट्रपति को सम्बोधित एवं हस्ताक्षरित त्यागपत्र,
2. संविधान के उल्लंघन के आरोप मे महाभियोग की प्रक्रिया के आधार पर।
राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति - भारतीय राष्ट्रपति राज्य का संवैधानिक अध्यक्ष एवं संसद का अभिन्न अग होता है। भारतीय संविधान के अंतर्गत यह सर्वाधिक सम्मान, गरिमा एवं प्रतिष्ठा का पद है। संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है। (अनुच्छेद 53), किन्तु अनुच्छेद 74 (1) के अनुसार, राष्ट्रपति कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार करता है, जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। अनुच्छेद 75(1) के अनुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जो लोकसभा में बहुमत दल का नेता होता है।
42वें संविधान संशोधन के पश्चात् स्थिति - 42वे सविधान संशोधन, 1976 के पूर्व यह स्पष्ट नहीं था कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य है। यह माना गया कि कहीं राष्ट्रपति अपनी विधिक स्थिति का लाभ उठाते हुए मंत्रिपरिषद की सिफारिशों को मानने से इंकार न कर दे।
44वें संविधान संशोधन के पश्चात् स्थिति - 44वें संविधान संशोधन, 1978 द्वारा अनुच्छेद 74 में कुछ संशोधन कर राष्ट्रपति को अधिक अधिकार दिये गये। यह निश्चित किया गया कि राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद द्वारा भेजी गयी सलाह को या तो माने अथवा पुनर्विचार के लिए वापस मंत्रिपरिषद को भेज सकता है, किन्तु पुनर्विचार के पश्चात् भेजी गयी सलाह को मानने के लिए राष्ट्रपति बाध्य होगा। इस परिवर्तन का उद्देश्य राष्ट्रपति पद की गरिमा एवं मंत्रिपरिषद पर राष्ट्रपति के 'नैतिक अंकुश' को बनाये रखने के लिए किया गया था।
इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत की संसदीय व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रपति वास्तविक प्रधान नहीं है अपितु उसकी प्रस्थिति एक संवैधानिक अध्यक्ष की है।
राष्ट्रपति की शक्तियाँ एवं कार्य - संविधान के अधीन राष्ट्रपति को अनेक प्रकार की शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं। इन शक्तियों को निम्नप्रकार विभाजित किया जा सकता है.
1. कार्यपालिका शक्तियाँ - संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है, जिसका प्रयोग वह मंत्रिपरिषद की सलाह से करता है। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के साथ ही अन्य मंत्रियों, उच्च एव उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशो, राज्य के राज्यपालों, भारत के महान्यायवादी तथा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति को केन्द्रीय शासन से संबंधित सभी जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है। प्रधानमंत्री का यह कर्त्तव्य है कि जब भी राष्ट्रपति आवश्यक समझे उसे मंत्रिपरिषद के निर्णयों एवं कार्यवाहियों से अवगत कराये।
2. विधायी शक्तियाँ - राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है। उसे संसद का अधिवेशन बुलाने, सत्रावसान करने तथा लोकसभा को विघटित करने का अधिकार है। वह लोक सभा की प्रथम बैठक तथा संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करता है। जब किसी विधेयक के संबंध में दोनों सदनों में मतभेद उत्पन्न हो जाता है तो राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाता है। राष्ट्रपति विधेयकों को अपनी अनुमति प्रदान करता है। धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से ही सदन में पेश किये जा सकते हैं।
3. न्यायिक शक्तियाँ - राष्ट्रपति को अनेक न्यायिक शक्तियाँ भी प्राप्त हैं। वह उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति तो करता है, साथ ही उसे किसी अपराधी को क्षमा करने, दंड को कम करने, दंड को बदलने अथवा समाप्त करने का अधिकार भी प्राप्त है। राष्ट्रपति अपने इस अधिकार का प्रयोग निम्न मामलों में कर सकता है -
(i) जहाँ दंड किसी सेना न्यायालय द्वारा दिया गया हो।
(ii) जहाँ आपराधिक मामला संघ की कार्यपालिका शक्ति के क्षेत्र के अंतर्गत हो।
(iii) जहाँ मृत्युदंड दिया गया हो।
4. वित्तीय शक्तियाँ - संविधान द्वारा राष्ट्रपति को अनेक वित्तीय शक्तियाँ भी प्रदान की गयी हैं। वित्त विधेयक, धन विधेयक, अनुदान की मांगों से संबंधित विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के बिना लोकसभा में पेश नहीं किये जा सकते। भारत की आकस्मिक निधि राष्ट्रपति के नियंत्रण में रहती है।
5. राजनयिक शक्तियाँ- देश का राज्याध्यक्ष होने के कारण राष्ट्रपति भारत के विदेशी संबंधों एवं विदेशी मामलों का प्रतिनिधित्व करता है। वह विदेशों में भारतीय उच्चायुक्तों एवं राजनयिकों को नियुक्त करता है तथा विदेशी राजनयिकों का स्वागत करता है एवं परिचय प्राप्त करता है।
राष्ट्रपति की सामान्यकालीन शक्तियों का मूल्यांकन - राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों को छोड़ कर अन्य शक्तियाँ सामान्यकालीन शक्तियाँ कहलाती हैं। यद्यपि राष्ट्रपति की सामान्यकालीन शक्तियाँ ऊपरी तौर पर देखने से अत्यन्त विशाल दिखाई देती है, किन्तु 42वें एवं 44वें संविधान संशोधनों द्वारा जो व्यवस्था की गयी है, जिसे पहले बताया जा चुका है, वह मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य है।
6. राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ - भारतीय संविधान में आपातकालीन उपबंध जर्मनी के संविधान से लिये गये है। आपातकालीन उपबंध संविधान के अनुच्छेद 352 से 360 तक में वर्णित है। संविधान में तीन प्रकार के आपातकालो का वर्णन है
(i) युद्ध या बाह्य आक्रमण या 'सशस्त्र विद्रोह' से उत्पन्न राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)
(ii) राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता से उत्पन्न राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356)
(iii) वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)
(i) राष्ट्रीय आपातकाल - यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाये कि युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से देश की सुरक्षा के लिए संकट खड़ा हो गया है तो वह संपूर्ण भारत अथवा उसके किसी भाग की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है, किन्तु ऐसी घोषणा मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश पर ही की जा सकती है। यह उद्घोषणा केवल एक माह तक ही प्रवर्तन में रहेगी यदि संसद के दोनों सदन अपने दो तिहाई बहुमत से उसका अनुमोदन न कर दें। यदि लोकसभा भग रहती है तो राज्यसभा द्वारा एक माह के भीतर इसका अनुमोदन किया जाना आवश्यक है। संसद के दोनों सदन आपातकाल की उद्घोषणा को एक बार में 6 माह के लिए बढ़ा सकते हैं, किन्तु यह उद्घोषणा कितनी बार बढायी जा सकती है इसकी कोई सीमा नहीं है।
आपात उद्घोषणा का प्रभाव- राष्ट्रीय आपात का भारत की राजनीतिक प्रक्रिया पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। इसे निम्न प्रकार समझा जा सकता है-
(i) राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान संसद विधि द्वारा लोकसभा का कार्यकाल 1 वर्ष के लिए बढ़ा सकती है, किन्तु यह विस्तार आपातकाल की समाप्ति के बाद अधिकतम 6 माह तक चल सकता है।
(ii) संसद को राज्य सूची सहित किसी भी विषय पर विधि बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इसी तरह संसद सत्र में न हो तो राष्ट्रपति किसी भी विषय पर अध्यादेश जारी कर सकता है।
(iii) केन्द्र सरकार की कार्यकारिणी शक्ति का विस्तार राज्य सूची के विषयो तक हो जाता है। केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों को निर्देश दे सकती है कि वे अपनी कार्यकारिणी शक्ति का प्रयोग किस प्रकार करें।
(ii) राज्यों में राष्ट्रपति शासन- यदि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 356 के तहत राज्यपाल की सिफारिश पर अथवा अन्य आधार पर यह समाधान हो जाता है कि किसी राज्य या राज्यों में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है तो उस राज्य का शासन राष्ट्रपति अपने हाथ में ले सकता है। इसी को राष्ट्रपति शासन कहते हैं। यह उद्घोषणा अधिकतम दो माह तक चल सकती है यदि संसद द्वारा दो माह के भीतर साधारण बहुमत से इसका अनुमोदन न कर दिया जाये। संसद अपने अनुमोदन से एक बार में 6 माह के लिए इसे बढ़ा सकती है। इस प्रकार छः माह करके यह घोषणा अधिकतम तीन वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है, किन्तु एक वर्ष से अधिक इसे केवल तभी बढ़ाया जा सकता है, जब देश में अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल लगा हो या चुनाव आयोग यह प्रमाणित कर दें कि उस राज्य में ऐसी परिस्थितियाँ नहीं है कि चुनाव कराये जा सकें।
उद्घोषणा का प्रभाव
(i) राष्ट्रपति राज्य सरकार के सभी कार्य अपने हाथ में ले सकता है तथा उसका प्रशासन राज्यपाल या किसी प्रशासक के माध्यम से करेगा।
(ii) राज्य विधानसभा को भंग या निलंबित कर उस राज्य के लिए विधि बनाने तथा बजट पारित करने का काम संसद करती है।
(iii) यदि संसद का सत्र न चल रहा हो तो राष्ट्रपति उस राज्य के लिए अध्यादेश जारी कर सकता है।
(iv) यदि लोकसभा सत्र में न हो तो राष्ट्रपति अपनी अनुज्ञा से संचित निधि से धन स्वीकृत कर सकता है।
(iii) वित्तीय आपातकाल - यदि राष्ट्रपति को यह आभास हो जाये कि भारत या उसके किसी भाग में वित्तीय स्थायित्व या साख का संकट खड़ा हो गया है तो वह वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है। यह उद्घोषणा अधिकतम दो माह तक चल सकती है, यदि संसद द्वारा साधारण बहुमत उसका अनुमोदन न कर दिया जाये। वित्तीय आपातकाल की अधिकतम अवधि निश्चित नहीं है।
उद्घोषणा का प्रभाव
(i) संघ एवं राज्य सरकारों के पदाधिकारियो (उच्च एवं उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों सहित) के वेतन एवं भत्तों में कटौती की जा सकती है।
(ii) राज्य विधानमंडल द्वारा पारित सभी धन विधेयकों पर राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक है।
(iii) राष्ट्रपति, राज्य सरकारों को वित्तीय औचित्य के सिद्धान्तों के पालन का निर्देश दे सकता है।
(iv) केन्द्र एवं राज्यों के मध्य धन संबंधी बटवारे के प्रावधानों में परिवर्तन किया जा सकता है।
आपातकालीन शक्तियों का मूल्यांकन - संविधान में आपातकालीन उपबंधों की अनेक विद्वानों ने कटु आलोचना की है। एच. वी. कामथ ने संकटकालीन प्रावधानों की आलोचना करते हुए कहा है कि, “इस अध्याय द्वारा हम एक निरंकुश तथा पुलिस राज्य की आधारशिला रख रहे हैं। विद्वानों का मानना है कि आपातकाल के दौरान देश का संघात्मक स्वरूप समाप्त हो जाता है और वह एकात्मक रूप ग्रहण कर लेता है साथ ही मौलिक अधिकारों का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। आलोचकों का यह भी मानना है कि राज्यों में राष्ट्रपति शासन का प्रयोग सत्तारूढ़ दल अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए कर सकता है, इतना ही नहीं वित्तीय आपातकाल के दौरान राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता समाप्त हो जाती है और वे पूर्णतया केन्द्र की दया के पात्र बन जाते हैं। इस प्रकार आपात उपबन्धनों की अनेक आधारों पर आलोचना की जाती है।
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- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रवाद के उद्भव और विकास के कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय आन्दोलन में कांग्रेस के उदारवादी चरण की विचारधारा, कार्यपद्धति, माँगें, सीमाओं के आलोक में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जन्म के संदर्भ पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काँग्रेस में उग्रवादी विचारधारा के उद्भव के क्या कारण थे?
- प्रश्न- भारत में राष्ट्रवाद के उदय के तात्कालिक कारण क्या थे?
- प्रश्न- बंगाल विभाजन के निहितार्थ स्पष्ट करते हुए स्वदेशी आन्दोलन का वर्णन कीजिए
- प्रश्न- कांग्रेस के पूर्ववर्ती संगठनों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उदार राष्ट्रवादियों की विचारधारा एवं कार्यपद्धति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय उदारवादियों के योगदान पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उग्रवादी राष्ट्रीय आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके विकास के समय की राजनीतिक परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सन् 1909 ई. अधिनियम पारित होने के कारण बताइये।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, (1909 ई.) के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- जलियाँवाला हत्याकांड की घटना तथा उसके प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- खिलाफत आन्दोलन से क्या अभिप्राय है? खिलाफत आन्दोलन के उदय एवं विकास की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के प्रारम्भ होने प्रमुख कारणों की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन की असफलता के कारणों पर प्रकाश डालते हुए इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- असहयोग आंदोलन के सिद्धांतों एवं कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैध शासन प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसकी असफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा' का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ कब और किस प्रकार हुआ सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड' पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रौलेक्ट एक्ट क्या था?
- प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा 'खिलाफत' जैसे धार्मिक आन्दोलन का समर्थन किन आधारों पर किया गया था?
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के सिद्धान्त, कार्यक्रमों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919 ई.) के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के विषय में आप क्या जानते हैं? इसे आरम्भ करने के क्या कारण थे?
- प्रश्न- गाँधी-इरविन समझौता क्या था?
- प्रश्न- संविधान सभा का निर्माण किस प्रकार किया गया स्पष्ट कीजिए तथा अपने कार्य निष्पादन में इसे किन बाधाओं का सामना करना पड़ा?
- प्रश्न- भारतीय संविधान सभा की अवधारणा का विकास किस प्रकार हुआ, वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान के विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के निर्माण की अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान सभा के प्रकृति स्वरूप की चर्चा करते हुए यह भी स्पष्ट कीजिए कि क्या इसे 'वकीलों का स्वर्ग' कहा जा सकता है?
- प्रश्न- क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि भारतीय संविधान 1935 के भारत शासन अधिनियम का वृहत् संस्करण है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संविधान की परिभाषा दीजिए। संविधान के मुख्य प्रकारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों की कार्यप्रणाली के विषय में बताइए तथा संविधान निर्माण की विभिन्न समितियाँ कौन-सी थी?
- प्रश्न- संविधान सभा द्वारा संविधान के लिए उद्देश्य प्रस्ताव क्या था? संविधान निर्माताओं के सामने संविधान निर्माण में क्या-क्या समस्याएँ थीं?
- प्रश्न- लिखित व निर्मित संविधान से अभिप्राय बताइए।
- प्रश्न- संविधान सभा को कार्य निष्पादन में किन बाधाओं का सामना करना पड़ा?
- प्रश्न- संविधान सभा के कार्यकरण की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- नेहरू रिपोर्ट (1928) की प्रमुख सिफारिशें क्या थीं?
- प्रश्न- पं. नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव (1946) के महत्वपूर्ण प्रस्ताव क्या थे?
- प्रश्न- भारतीय संविधान की मौलिकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम 1935 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'प्रारूप समिति' पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- नेहरू रिपोर्ट- 1928 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रस्तावना की भूमिका से क्या आशय है? भारतीय संविधान की प्रस्तावना उद्देश्य तथा महत्व बताइये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रस्तावना के स्वरूप की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए
- प्रश्न- 73 वें संविधान संशोधन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान की प्रकृति से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान की विशालता के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान में केन्द्र को शक्तिशाली क्यों बनाया गया?
- प्रश्न- भारतीय संविधान में संशोधन प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की मूल प्रस्तावना को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संवैधानिक उपचारों का अधिकार पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बयालिसवें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान की मूल प्रस्तावना में किये गये सुधारों को बताइये।
- प्रश्न- एकल नागरिकता क्या है?
- प्रश्न- 'लोक कल्याणकारी राज्य' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के नागरिकता सम्बन्धी प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में किसी भी व्यक्ति की नागरिकता किन आधारों पर समाप्त हो सकती है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों की प्रकृति तथा उनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
- प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- नीति निर्देशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निर्देशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निर्देशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निर्देशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त के स्वरूप और क्षेत्र का वर्णन कीजिये। भारतीयराजनीतिक व्यवस्था में सुधार के लिए यह किस प्रकार उपयोगी है?
- प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
- प्रश्न- हमारे देश में नीति निर्देशक तत्वों का कार्यान्वयन कहाँ तक हुआ है, स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के उन नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
- प्रश्न- नीति निर्देशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निर्देशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में संविधान संशोधन (Constitutional Amendment) की क्या प्रक्रिया अपनाई गई है? विस्तारपूर्वक समझाइए।
- प्रश्न- भारतीय संसद की संविधान संशोधन की शक्ति के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अनुच्छेद 356 चौवालीसवें संविधान संशोधन विधेयक पर संक्षिप्त टिप्पणी करें।
- प्रश्न- राष्ट्रपति पद की योग्यतायें एवं कार्यकाल बताते हुए इस पद की संवैधानिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया को समझाइये, उसे अपने पद से कैसे हटाया जा सकता है तथा राष्ट्रपति के पद रिक्तता की स्थिति में उसके कार्यों को कैसे सम्पादित किया जाता है?
- प्रश्न- भारत के राष्ट्रपति की स्थिति के सम्बन्ध में संवैधानिक प्रधान की धारणा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- प्रधानमन्त्री की स्थिति उसका महत्व तथा उसकी भूमिका की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संघ में प्रधानमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है? शासन में उसका क्या महत्व है?
- प्रश्न- भारत में मंत्रिपरिषद के गठन, कार्य व शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में मंत्रिमंडलीय प्रणाली की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- उपराष्ट्रपति पद की योग्यतायें, कार्यकाल तथा निर्वाचन पद्धति बताइये।
- प्रश्न- उपराष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने की प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत के राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या भारतीय राष्ट्रपति 'रबर स्टैम्प' है? पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति (Veto Power) का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अनुच्छेद 352 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अनुच्छेद 356 पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री की विशिष्ट स्थिति पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के सम्बन्धों पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत में प्रधानमन्त्री के प्रभुत्व से वृद्धि के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यपालक के रूप में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रधानमन्त्री और संसद पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद में प्रधानमन्त्री की स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद के सामूहिक उत्तरदायित्व पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संसद की संरचना का संक्षेप में वर्णन कीजिए। संसद के कार्य एवं शक्तियाँ बताइये।
- प्रश्न- राज्य सभा की संरचना, कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा की संरचना एवं लोकसभा का कार्यकाल बताते हुए इसके कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा की शक्तियों एवं स्थिति का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- भारतीय लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति, शक्तियों तथा कार्यों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- संसद में कानून निर्माण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा अध्यक्ष के कार्य एवं अधिकार संक्षेप में बतायें।
- प्रश्न- राज्य सभा के पदाधिकारियों के विषय में बताइए।
- प्रश्न- वित्त विधेयक के सम्बन्ध में लोकसभा के क्या विशेषाधिकार हैं?
- प्रश्न- धन विधेयक एवं वित्त विधेयक के मध्य भेद स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संसदीय व्यवस्था की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय संसद में विपक्ष की भूमिका टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की नियुक्ति एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की स्वविवेकीय कार्यों एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल की भूमिका अथवा स्थिति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है? उसकी राज्य के शासन में क्या भूमिका और स्थिति है?
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री की नियुक्ति, उसके अधिकार एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए एवं मन्त्रिपरिषद एवं विधानसभा के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल, मंत्रिपरिषद तथा मुख्यमंत्री के आपसी सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की स्वविवेकी शक्तियों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'केन्द्रीय अभिकर्ता' के रूप में राज्यपाल की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- राज्यपाल का निर्वाचन क्यों नहीं होता? संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान के अनुच्छेद 356 के संदर्भ में राज्य के राज्यपाल की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री / मन्त्री पद की पात्रता सम्बन्धी सर्वोच्च न्यायालय के 10 सितम्बर, 2000 के निर्णय की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'मुख्यमंत्री चयन की राजनीति टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- विधानसभा की रचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विधान परिषद की रचना किस प्रकार होती है? उसके कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना और गठन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक समीक्षा के अधिकार का वर्णन कीजिए तथा इसका महत्व समझाइये।
- प्रश्न- सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता एवं महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, शक्तियों और कार्यों की विवेचना कीजिए। इसे भारतीय संविधान का संरक्षक क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- उच्च न्यायालय के गठन एवं न्यायाधीशों की नियुक्ति, कार्यकाल,शपथ एवं स्थानान्तरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार या शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'सामाजिक न्याय' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- न्याय पुनः निरीक्षण की शक्ति तथा उच्च न्यायालयों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में केन्द्र राज्य सम्बन्धों की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में केन्द्र राज्य सम्बन्धों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र तथा राज्यों के बीच सम्बन्धों के सुधार के लिए आप किन उपायों को आवश्यक समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्य स्वायत्तता (Autonomy) से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- 'सहकारी संघवाद' (Co-operative Federalism) पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वित्त आयोग के गठन पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय विकास परिषद के गठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संविधान की 5वीं एवं 6ठी अनुसूची किन क्षेत्रों को विशेष दर्जा प्रदान करती है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संविधान की छठी अनुसूची किन क्षेत्रों से सम्बन्धित विशेष प्रावधान करती है?
- प्रश्न- संविधान में आदिवासी क्षेत्रों के लिये विशेष प्रावधान क्यों रखे गये? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत और उत्तर-पूर्व के राज्यों को लागू इनर-लाइन परमिट क्या है?
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन आयोग के संगठन एवं कार्यों अथवा शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को दूर करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार क्या है? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- निर्वाचन विषयक आधारभूत सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मुख्य निर्वाचन आयुक्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
- प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
- प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।